इस पेज में बिहार बोर्ड कक्षा 12 दिगंत भाग 2 हिंदी पाठ 4 अर्धनारीश्वर के सारांश, पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर और Question Bank Previous Year Questions का व्याख्या किया गया है। We have include Bihar Board Class 12th Hindi Digant bhag 2 Chapter 4 Ardhnarishwar summary, Class 12 Hindi Ardhnarishwar Notes Question Answers, Ardhnarishwar class 12 hindi previous year questions, Ardhnarishwar class 12th text book question answer solutions, Ardhnarishwar class 12th summary, Ardhnarishwar class 12 question answer, Ardhnarishwar digant bhag 2 book solutions, class 12 hindi chapter 4 text book question answers, Class 12 Hindi Ardhnarishwar Notes Question Answers Text Book Questions & Answers, Class 12 Hindi Ardhnarishwar Notes Question Answers and Summary, digant bhag 2 Class 12 Hindi Ardhnarishwar Notes Question Answers, Class 12 Hindi Ardhnarishwar Notes Question Answers
4. अर्धनारीश्वर
लेखक परिचय
लेखक- रामधारी सिंह दिनकर
जन्म-23 सितम्बर 1908 निधन- 24 अप्रैल 1974
जन्म स्थान – सिमरिया बेगूसराय बिहार
माता-पिता – मनरूप देवी और रवि सिंह
शिक्षा- आरंभिक शिक्षा गाँव में, 1928 में मोकामा घाट रेलवे हाई स्कूल से मैट्रिक, 1932 में पटना कॉलेज से बी.ए.(इतिहास)
साहित्यिक अभिरुचि- 1925 में छात्र सहोदर पहली कविता प्रकाशित, छात्र जीवन में देश, प्रकाश, प्रतिमा जैसे अनेक रचनाएँ प्रकाशित हुई।
कृतियाँ- प्रमुख काव्य- प्रणभंग (1929), रेणुका (1935), हुंकार (1938), रसवंती (1940), कुरुक्षेत्र (1946), रश्मिरथी (1952), नीलकसम (1954), उर्वशी (1961)
प्रमुख गद्य- मिट्टी की ओर (1946), संस्कृति के चार अध्याय (1956), काव्य की भूमिका (1958)
सम्मान– संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी और उर्वशी के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्मभूषण से सम्मानित।
रामधारी सिंह दिनकर राष्ट्रकवि के नाम से विख्यात हैं।
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पाठ का सारांश
प्रस्तुत निबंध अर्धनारीश्वर की रचना राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने की है। ऐसा माना जाता है कि अर्धनारीश्वर भारत का मिथकीय प्रतीक है जिसमें दिनकर ने अपना मनोचीत आदर्श निरूपित किया है।
मूलत: अर्धनारीश्वर भगवान शंकर और पार्वती का कल्पित रूप होता है जिसका आधा अंग पुरुष का और आधा अंग नारी का होता है। अर्धनारीश्वर इस बात का प्रतीक है कि स्त्री और पुरुष में कोई भेद नहीं है तथा एक का गुण दूसरे का दोष नहीं हो सकता अर्थात अगर पुरुषों में नारियों का गुण आ जाए तो इससे उसकी मर्यादा कम नहीं होगी बल्कि उनके गुणों में अभिवृद्धि होगी।
लेकिन कृषि के विकास के बाद नारी की पराधीनता आरंभ हो गई। जिंदगी दो भागों में बंट गई। नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगे। दोनों अपने कर्तव्यों से विचलित हो गए। नर कर्कश और कठोर हो गया। युद्धों में रक्त बहाते समय उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि रक्त के पीछे जिनका सिंदूर बह रहा है उनका क्या होगा और न ही उन सिंदूरवालियों को ही फिक्र किया। दिनकर जी कहते हैं कि अगर कौरवों की सभा में सन्धि वार्ता कृष्ण और दुर्योधन के बीच न होकर कुंती और गंधारी के बीच हुई होती तो शायद आज महाभारत का युद्ध नहीं होता।
लेखक इस पाठ में नारी के महत्व को बताया है। मुंशी प्रेमचंद कहते हैं कि पुरूष जब नारी का गुण लेता है तो वह देवता बन जाता है, किंतु नारी जब नर का गुण सिखती है तो वह राक्षसी हो जाती है।
लेखक नारीयों प्रति लोगों के सोच को भी इस पाठ में उजागर करते हैं। वह कहते हैं कि समाज में नारी को ही ‘नागिन’ या ‘जादूगरनी’ समझा जाता है। परंतु लेखक इस बात को झूठ मानते हैं। नर अपनी दुर्बलता छूपाने के लिए इस प्रकार की शब्दों का ईजाद करता है।
रामधारी सिंह दिनकर ने इस निबंध में स्त्रियों के सम्मान को बढ़ाने पर बल दिया है। उन्होने गांधी और मार्क्स के विचारों की वकालत की है जिन्होंने नारी जाति के सम्मान की बात कही है। उन्होने गांधी जी की पोती द्वारा लिखित पुस्तक ‘बापू मेरी माँ’ की भी चर्चा की है जिसमें पुरुषों में उपस्थित नारियों के गुण जैसे दया, क्षमा इत्यादि को बतलाया गया है।
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पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. यदि संधि की वार्ता कुंती और गांधारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था कि महाभारत न मचता‘ । लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं ? अपना पक्ष रखें-
उत्तर – रामधारी सिंह दिनकर लेखक नारी के गुण की चर्चा करते हुए कहते हैं कि दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता नारी के गुण है । इस गुण के कारण नारी विनम्र और दयावान होती है । इस गुण का अच्छा पक्ष यह है कि यदि पुरुष इन गुणों को अंगीकार कर ले तो अनावश्यक विनाश से बचा जा सकता है । पुरुष सदियों से अपने आपको शक्तिशाली मानता आया है। उसने नारियों को घर की चारदीवारी में सीमित किया । घर का जीवन सीमित और बाहर की जीवन असीमित, निस्सीम होता गया । पुरुष इतना कर्कश और कठोर हो उठा कि अपना रक्त बहाते समय कुछ नहीं सोचता कि क्या होनेवाला है । स्त्रियों के गुण दया, माया, सहिष्णु और भीरुता पुरुषों के गुण पौरुष, इत्यादि इनके विपरीत है । अतः लेखक कहता है कि यह वार्ता यदि कुंती और गांधारी के बीच हुई होती तो यह महाभारत न हुआ होता । पुरुष में क्रोधादि गुण होते हैं जिसमें समर्पण के बदले अहम का भाव अधिक होता है । दुर्योधन के अहम के कारण यह महाभारत हुआ ।
प्रश्न 2. अर्द्धनारीश्वर की कल्पना क्यों की गई होती ? आज इसकी क्या सार्थकता है ?
उत्तर- अर्द्धनारीश्वर, शंकर और पार्वती का काल्पित रूप है । अर्द्धनारीश्वर के द्वारा स्त्री और पुरुष के गुणों को एक एक कर यह बताया गया है कि नर-नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते । अर्थात् नरों में नारियों के गुण आए तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं बल्कि उनकी पूर्णता में वृद्धि ही होती है । आज इसकी जरूरत इसलिए है कि पुरुष समाज वर्चस्ववादी है और उसने वह समझ रखा है कि पुरुष में स्त्रीयोचित गुण आ जाने पर स्त्रैण हो जाता है । उसी प्रकार स्त्री समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगता है । इस प्रकार पुरुष के गुणों के बीच एक प्रकार का विभाजन हो गया है तथा विभाजन की रेखा को लाँघने में नर और नारी दोनों को भय लगता है । इसलिए अर्द्धनारीश्वर की जरूरत है । संसार में पुरुषों के समान ही स्त्रियाँ हैं । जिस प्रकार पुरुषों को सूर्य की धूप पर बराबर अधिकार है उसी तरह नारियों का भी यह अधिकार है । पुरुष ने नारी को षड्यंत्रों के जरिये उसे अपने अधीन कर रखा है । दिनकर इस पुरुष वर्ग एवं स्त्री वर्ग की समझाना चाहते हैं कि नारी – नर पूर्ण रूप से समान हैं । पुरुष यदि नारियों के कुछ गुण अपना ले तो अनावश्यक विनाश से बच सकता है और नारी पुरुषों के गुण अपना ले तो भय से मुक्त हो सकती है । इसीलिए अर्द्धनारीश्वर की कल्पना की गई है ।
प्रश्न 3. रवीन्द्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचन्द के चिन्तन से दिनकर क्यों असन्तुष्ट हैं
उत्तर – रवीन्द्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचन्द के चिन्तन में दिनकर असन्तुष्ट इसलिए हैं कि वे अर्द्धनारीश्वर रूप उनके चिन्तन में कहीं प्रकट नहीं हुआ । बल्कि नारी को नीचा दिखाने, उसे अधीन करने की ही बात कही गयी है । दिनकर मानते हैं कि अर्द्धनारीश्वर की कल्पना से इस बात के संकेत हैं कि नर-नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते । दिनकर पाते हैं कि यह दृष्टि रवीन्द्रनाथ के पास नहीं है । वे नारी के गुण यदि पुरुष में आ जाएँ तो उसको दोष मानते हैं । नारियों को कोमलता ही शोभा देती है । वे कहते हैं कि-
नारी यदि नारी हय की होइवे कर्म – कीर्त्ति, वीर्यबल, शिक्षा – दीक्षा तार ?
अर्थात् नारी की सार्थकता उसकी भंगिमा के मोहक और आकर्षक होने में है, केवल पृथ्वी की शोभा, केवल आलोक, केवल प्रेम की प्रतिमा बनने में हैं । कर्मकीर्त्ति, वीर्यबल और शिक्षा-दीक्षा लेकर वह क्या करेगी ? प्रेमचन्द ने कहा है कि ” पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है, किन्तु नारी जब नर के गुण सीखती है तब वह राक्षसी हो जाती है ।” इसी प्रकार प्रसाद जी इड़ा के विषय में यदि कहा जाय कि इड़ा वह नारी है जिसने पुरुषों के गुण सीखे हैं तो निष्कर्ष निकलेगा कि प्रसादजी भी नारी की पुरुषों के क्षेत्र से अलग रखना चाहते हैं । नारियों के प्रति इस तरह के भाव तीन बड़े चिन्तकों को शोभा नहीं देता है । इसीलिए दिनकर इनके चिन्तन से दुखी है । नारी संसार में सर्वत्र नारी है और पुरुष पुरुष ।
प्रश्न 4. प्रवृत्तिमार्ग ओर निवृत्तिमार्ग क्या है ?
उत्तर – प्रवृत्तिमार्ग : प्रवृत्तिमार्ग को गृहस्थ जीवन की स्वीकृति का मार्ग है । दिनकरजी के अनुसार गृहस्थ जीवन में नारियों की मर्यादा बढ़ती है । जो पुरुष गृहस्थ जीवन को अच्छा मानते हैं उन्हें प्रवृत्तिमार्गी माना जाता है । जो प्रवृत्तिमार्गी हुए उन्होंने नारियों को गले से लगाया । नारियों का सम्मान दिया । प्रवृत्तिमार्गी जीवन में आनन्द चाहते थे और नारी आनन्द की खान है । वह ममता की प्रतिमूर्ति है । वह दया, माया, सहिष्णुता की भंडार है ।
निवृत्तिमार्ग : निवृत्तिमार्ग गृहस्थ जीवन को अस्वीकार करनेवाला मार्ग है । गृहस्थ जीवन को अस्वीकार करना नारी को अस्वीकार करना है । निवृत्ति मार्ग से नारी की मान मर्यादा गिरती है । जो निवृत्तिमार्गी बने उन्होंने जीवन के साथ नारी को भी अलग ढकेल दिया क्योंकि वह उनके किसी काम की चीज नहीं थी । उनका विचार था कि नारी मोक्ष प्राप्ति में बाधक है । यही कारण था कि प्राचीन विश्व में जब वैयक्तिक मुक्ति की खोज मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना मानी जाने लगी, तब झुंड के झुंड विवाहित लोग संन्यास लेने लगे और उनकी अभागिन पलियों के सिर पर जीवित वैधव्य का पहाड़ टूटने लगा । बुद्ध, महावीर, कबीर आदि संत महात्मा निवृत्तिमार्ग के समर्थक थे ।
प्रश्न 5. बुद्ध ने आनन्द से क्या कहा ?
उत्तर – बुद्ध ने आनन्द से कहा कि आनंद ! मैंने जो धर्म चलाया था, वह पाँच सहस्र वर्ष तक चलने वाला था, किन्तु अब वह केवल पाँच सौ वर्ष चलेगा, क्योंकि नारियों को मैंने भिक्षुणी होने का अधिकार दे दिया है ।
प्रश्न 6. स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे क्या मंशा होती है, क्या ऐसा कहना उचित है ?
उत्तर- स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे पुरुष की मंशा खुद को श्रेष्ठ साबित करने की है । ऐसा करके पुरुष अपनी दुर्बलता को भी छिपाता है । साथ ही वह नारी को दबाकर रखने के लिए भी ऐसा करता है ।
ऐसा कहना बिल्कुल भी उचित नहीं है क्योंकि इससे नारी के हृदय को ठेस पहुँचती है। वैसे भी नारी आदरणीय तथा श्रद्धा के योग्य है । समाज में उसका भी बराबर का स्थान है । इसलिए ऐसा कहना पूर्णतः गलत है ।
प्रश्न 7. नारी के पराधीनता कब से आरम्भ हुई ?
उत्तर – नारी की पराधीनता तब आरंभ हुई जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया, जिसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा । यहाँ से जिंदगी दो टुकड़ों में बँट गई। घर का जीवन सीमित और बाहर का जीवन विस्तृत होता गया, जिससे छोटी जिन्दगी बड़ी जिन्दगी के अधिकाधिक अधीन हो गई । नारी की पराधीनता का यह संक्षिप्त इतिहास है ।
प्रश्न 8. प्रसंग स्पष्ट करें – (क) प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है ।
(ख) जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है ।
व्याख्या – (क) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ रचित निबंध अर्द्धनारीश्वर से ली गयी है । प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह कहना चाहता है कि जिस तरह वृक्ष के अधीन उसकी लताएँ फलती-फूलती हैं उसी तरह पत्नी भी पुरुषों के अधीन है । वह पुरुष के पराधीन है । इस कारण नारी का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया । उसके सुख और दुख, प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा यहाँ तक कि जीवन और मरण भी पुरुष की मर्जी पर हो गये । उसका सारा मूल्य इस बात पर जा ठहरा है कि पुरुषों की इच्छा पर वह है । वृक्ष की लताएँ वृक्ष के चाहने पर ही अपना पर फैलाती है । उसी प्रकार स्त्री ने भी अपने को आर्थिक पंगु मानकर पुरुष को अधीनता स्वीकार कर ली और यह कहने को विवश हो गयी कि पुरुष के अस्तित्व के कारण ही मेरा अस्तित्व है । इस परवशता के कारण उसकी सहज दृष्टि भी छिन गयी जिससे यह समझती कि वह नारी है । उसका अस्तित्व है । एक सोची-समझी साजिश के तहत पुरुषों द्वारा वह पंगु बना दी गई । इसीलिए वह सोचती है कि मेरा पति मेरा कर्णधार है मेरी नैया वही पार करा सकता है, मेरा अस्तित्व उसके होने के कारण को लेकर है । वृक्ष लता को अपनी जड़ों से सींचकर उसे सहारा देकर बढ़ने का मौका देता है और कभी दमन भी करता है । इसी तरह एक पत्नी भी इसी दृष्टि से अपने पति को देखती है ।
(ख) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर के निबंध अर्द्धनारीश्वर से ली गयी है । निबन्धकार दिनकर कहते हैं कि नारी में दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता जैसे स्त्रियोचित गुण होते हैं । इन गुणों के कारण नारी विनाश से बची रहती है । यदि इन गुणों को पुरुष अंगीकार कर ले तो पुरुष के पौरुष में कोई दोष नहीं आता और पुरुष नारीत्व से पूर्ण हो जाता है । इसीलिए निबंधकार अर्द्धनारीश्वर की कल्पना करता है जिससे पुरुष स्त्री का गुण और स्त्री पुरुष की गुण लेकर महान बन सके । प्रकृति ने नर-नारी को सामान बनाया है पर गुणों में अंतर है । अतः निबन्ध कार नारीत्व के लिए एक महान पुरुष गाँधीजी का हवाला देता है कि गाँधीजी ने अन्तिम दिनों में नारीत्व की ही साधना की थी ।
प्रश्न 9. जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्म क्षेत्र है । कैसे ?
उत्तर- राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने अपने निबन्ध ‘अर्द्धनारीश्वर’ में नर-नारी के समान महत्व पर प्रकाश डाला है । उनके अनुसार नर-नारी एक-दूसरे के पूरक हैं। नर में नारीत्व का गुण एवं नारी में पौरुष का गुण सहज ही दृष्टिगोचर होता है ।
इस संसार में नर और नारी दोनों का जीवनोद्देश्य एक है । परन्तु पुरुषों ने अन्याय से अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनमाने विस्तार का क्षेत्र अधिकृत कर लिया है । जीवन की प्रत्येक बड़ी घटना आज केवल पुरुष- प्रवृत्ति से संचालित होती हुई दिखाई देती है । इसीलिए उसमें कर्कशता अधिक और कोमलता कम दिखाई देती है । यदि इस नियंत्रण और संचालन में नारियों का हाथ हो तो मानवीय संबंधों में कोमलता की वृद्धि अवश्य होगी । जीवन यज्ञ में उसका भी अपना हिस्सा है और वह हिस्सा घर तक ही सीमित नहीं बाहर भी है । आज नारियों को हर क्षेत्र में कार्य मिल रहा है और उसे वे बड़ी समझदारी से उतनी ही मजबूती के साथ करती है जितने कि पुरुष । यदि पुरुष अपना वर्चस्ववादी रवैया कम करें तो यह संभव है । इस प्रकृति के द्वारा इनमें कोई विभेद् नहीं किया गया है तो हम कौन होते हैं उनका विभेद करनेवाले । अतः पुरुष जिसे अपना कार्यक्षेत्र मानता है वह नारियों का भी कर्मक्षेत्र है ।
प्रश्न 10. ‘अर्द्धनारीश्वर‘ निबन्ध में दिनकरजी के व्यक्त विचारों का सार रूप प्रस्तुत करें ।
उत्तर- ‘अर्द्धनारीश्वर’ निबंध के द्वारा ‘दिनकर’ यह विभेद मिटाना चाहते हैं कि नर-नारी दोनों अलग-अलग हैं । नर-नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते । ‘दिनकर’ पुरुषों के वर्चस्ववादी रवैये से बाहर आकर नारी को समाज में प्रतिष्ठा दिलाना चाहते हैं जिसे पुरुषों से हीन समझा जाता है । दिनकर यह दिखलाना चाहते हैं नारी पुरुष से तनिक भी कमतर नहीं है । पुरुषों को भोगवादी दृष्टि छोड़नी होगी जो स्त्री को भोग्या मात्र समझता है । वे नारियों को भी कहते हैं कि उन्हें पुरुषों के कुछ गुण अंगीकार करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए और नहीं वह समझना चाहिए कि उनके नारीत्व को इससे बट्टा लगेगा या कमी आयेगी । पुरुषों को भी स्त्रियोचित गुण अपनाकर समाज में स्त्रैण कहलाने से घबराना नहीं चाहिए क्योंकि स्त्री के कुछ गुण शीलता, सहिष्णुता, भीरुता, पुरुषों द्वारा अंगीकार कर लेने पर वह महान बन जाता है । दिनकर तीन भारतीय चिन्तकों का हवाला देते हुए उनकी चिन्तन की दृष्टि से दुखी होते । दिनकर मानते हैं स्त्री भी पुरुष की तरह प्रकृति की बेमिसाल कृति है कि इसमें विभेद अच्छी बात नहीं । साथ ही नर-नारी दोनों का जीवनोद्देश्य एक है । जिसे पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है । जीवन की प्रत्येक बड़ी घटना पुरुष प्रवृति द्वारा संचालित होने से पुरुष में कर्कशता अधिक कोमलता कम दिखाई देती है । यदि इस नियंत्रण में नारियों का हाथ हो तो मानवीय संबंधों में कोमलता की वृद्धि अवश्य होगी । यही नहीं प्रत्येक नर को एक हद तक नारी ओर प्रत्येक नारी को एक हद तक नर बनाना आवश्यक है । दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता ये स्त्रियोचित गुण कहे जाते हैं । इसका अच्छा पक्ष है कि पुरुष इसे अंगीकार कर ले तो अनावश्यक विनाश से बच सकता है । उसी प्रकार अध्यवसाय, साहस और शूरता का वरण करने से भी नारीत्व की मर्यादा नहीं घटती । दिनकर अर्द्धनारीश्वर के बारे में कहते हैं कि अर्द्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक है कि नारी और नर जब तक अलग है तब तक दोनों अधूरे हैं बल्कि इस बात से भी पुरुष में नारीत्व की ज्योति जगे बल्कि यह प्रत्येक नारी में भी पौरुष का स्पष्ट आभास हो ।
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Previous Year Questions
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बुद्ध को नारियों को बौद्धधर्म में प्रवेश की अनुमति क्यों देना पड़ा ?
उत्तर – बुद्ध को नारियों को बौद्धधर्म में प्रवेश की अनुमति उन्हें मोक्ष दिलाने के लिए देनी पड़ी। इसका असर यह हुआ कि बौद्धधर्म जो पाँच सहस्र वर्ष तक चलनेवाला था वह केवल पाँच सौ वर्ष चला।
2. स्त्रियोचित गुण क्या है ?
उत्तर – स्त्रियोचित गुण का अर्थ है– स्त्रियों में अपेक्षित गुण । विनम्रता में शोभा पाती है । कर्कशता में वह आलोचना का पात्र बन जाती है।
संसार में सर्वत्र पुरुष है और स्त्री स्त्री । नारी समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगेगा। इसी प्रकार पुरुष भी स्त्रियोचित गुणों को अपनाकर समाज में स्त्रैण कहलाने से घबराता है।
3. पुरुष के गुण क्या है?
उत्तर – पुरुष पुरुषार्थ के लिए जाना जाता है तो स्त्री अपने स्त्रियोचित कोमलता के लिए । पुरुष में यदि स्त्रियजन्य कोमलता आ जाएगी तो वह निन्दा का पात्र बनेगा । स्त्रियाँ यदि पुरुषों की तरह आक्रामक होंगी तो यह भी निन्दा का विषय हो जाता है। आवश्यकता है कि पुरुषों में भी कुछ नारीत्व के गुण रहें। जिस पुरुष में केवल कठोरता ही कठोरता रहेगी तो नारियों के लिए जीना भी मुश्किल हो जाएगा । पुरुषार्थ की मात्रा एक सीमा तक ही उचित कही जाएगी।
4. नारी की पराधीनता कब से प्रारंभ हुई?
उत्तर – नारी की पराधीनता तब आरंभ हुई जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया, जिसके चलते नारी घर में दो टुकड़ों में बँट गई। घर का जीवन सीमित और बाहर का जीवन निस्सीम होता गया एवं छोटी जिंदगी बड़ी जिन्दगी के अधिकाधिक अधीन होती चली गई। नारी की पराधीनता का यह संक्षिप्त इतिहास है।
5. यदि सन्धि की वार्ता कुन्ती और गान्धारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था कि महाभारत न होती। इससे आप कहाँ तक सहमत है?
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित निबंध ‘अर्धनारीश्वर’ से उद्धृत हैं। पुरुष प्रधान समाज में स्त्रियों की भी राय ली जानी चाहिए। यदि संधि की वार्ता कुंती और गांधारी के बीच हुई होती, तो बहुत सम्भव था कि महाभारत की लड़ाई न छिड़ी होती । यदि स्त्रियों की राय ली जाय तो बड़ी-से-बड़ी लड़ाई भी रुक सकती है।
नारी और पुरुष की चिन्ताएँ अलग-अलग होती है। नारियों में दया का भाव पाया जाता है। वह इसी गुण से आप्लावित रहती है। वह युद्ध को टाल सकती है। यदि कुंती और गांधारी के बीच बातचीत को जाती तो महाभारत का भीषण युद्ध टल जाता।
6. बुद्ध ने आनंद से क्या कहा?
उत्तर – बुद्ध और महावीर ने नारियों को भी भिक्षुणी होने का अधिकार दिया था। महावीर का मानना था कि मोक्ष नारी जीवन में नहीं मिल सकता। पछतावा बुद्ध को भी हुआ । बुद्ध ने भी एक दिन आयुष्मान आनन्द से ईषत् पश्चाताप के साथ कहा कि ” आनन्द ! मैंने जो धर्म चलाया था, वह पाँच सहस्त्र वर्ष तक चलने वाला था, किन्तु वह केवल पाँच सौ वर्ष चलेगा, क्योंकि नारियों को मैंने भिक्षुणी होने का अधिकार दे दिया है।” धर्मसाधक महात्मा और साधु नारियों से भय खाते थे।
7. नर और नारी एक ही द्रव्य की ढली दो प्रतिमाएँ हैं? कैसे।
उत्तर – ‘अर्धनारीश्वर’ के गद्यकार रामधारी सिंह दिनकर नर और नारी की समानता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि नर और नारी एक द्रव्य की ढली दो प्रतिमाएँ हैं। आरंभ में दोनों समान थे। आज भी प्रत्येक नारी में कहीं-न-कहीं कोई एक प्रच्छन्न नर और प्रत्येक नर में कहीं-न-कहीं एक क्षीण नारी छिपी हुई है। किन्तु सदियों से नारी अपने भीतर नर को और नर अपने भीतर की नारी को बेतरह दबाता आ रहा है। परिणाम यह है कि आज सारा जमाना ही मरदाना मर्द और औरतानी औरत का जमाना हो उठा है। पुरुष इतना कर्कश और कठोर हो उठा है कि युद्धों में अपना रक्त बहाते समय उसे यह ध्यान ही नहीं रहता कि रक्त के पीछे जिनका सिन्दूर बहनेवाला है, उनका क्या हाल होगा । और न सिन्दूरवालियों को ही इसकी फिक्र है।
8. जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। कैसे?
उत्तर – नारी से दूर भागना मूर्खता है। नारी भोग की वस्तु मात्र नहीं है। नारी केवल नर को रिझाने अथवा प्रेरणा देने को नहीं बनी है। जीवन यज्ञ में उसका भी अपना हिस्सा है और वह हिस्सा घर तक ही सीमित नहीं, बाहर भी है। जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। नर और नारी, दोनों के जीवनोद्देश्य एक हैं। यह अन्याय है कि पुरुष तो अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनमाने विस्तार का क्षेत्र अधिकृत कर ले और नारियों के लिए घर का छोटा कोना छोड़ दे।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. ‘अर्धनारीश्वर‘ निबंध में व्यक्त विचारों का सार लिखें।
उत्तर – अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती का कल्पित रूप है, जिसका आधा अंग पुरुष का और आधा अंग नारी का होता है। नर-नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। अर्थात् नरों में नारियों के गुण आएँ तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं होती बल्कि उसकी पूर्णता में वृद्धि होती ही होती है।
आज नर है विधाता का मुख्य तंतुवाय जो वस्त्र बुनकर तैयार करता है, नारी का काम उस वस्त्र पर छींटे डालना है। नर है कुदाल चलाने वाला बलशाली किसान जो मिट्टी तोड़कर अन्न उपजाता है, नारी का काम दानों को अछोरना-पछोरना है। कामिनी तो अपने साथ यामिनी की शांति लाती है। नारी की पराधीनता तब आरंभ हुई जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया जिसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा। आज पुरुष अपनी पत्नी को फूलों का आनंदमय हार समझता है और प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती होगी।
पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है; किन्तु नारी जब नर के गुण सीखती है तब वह राक्षसी हो जाती है।
जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्म क्षेत्र है। नर और नारी के जीवनोद्देश्य एक है।
नारी और नर एक ही द्रव्य की ढली दो प्रतिमाएँ हैं। आज सारा जमाना ही मरदाना मर्द और औरतानी औरत का जमाना हो गया है।
प्रत्येक नर को एक हद तक नारी और प्रत्येक नारी को एक हद तक नर बनाना भी आवश्यक है।
अर्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक नहीं है कि नारी और नर जब तक अलग हैं तब तक दोनों अधूरे हैं, बल्कि इस बात का भी कि पुरुष में नारीत्व की ज्योति जगे और यह कि प्रत्येक नारी में भी पौरुष का स्पष्ट आभास हो ।
सप्रसंग व्याख्यात्मक प्रश्न
1. “ जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है।
उत्तर – पुरुष पुरुषार्थ के लिए जाना जाता है तो स्त्री अपने स्त्रियोचित कोमलता के लिए । पुरुष में यदि स्त्रियजन्य कोमलता आ जाएगी तो वह निन्दा का पात्र बनेगा । स्त्रियाँ यदि पुरुषों की तरह आक्रामक होंगी तो यह भी निन्दा का विषय हो जाता है।
आवश्यकता है कि पुरुषों में भी कुछ नारीत्व के गुण रहें। जिस पुरुष में केवल कठोरता ही कठोरता रहेगी तो नारियों के लिए जीना भी मुश्किल हो जाएगा। पुरुषार्थ की मात्रा एक सीमा तक ही उचित कही जाएगी।
2. प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है।
उत्तर – आज पत्नी पति पर आर्थिक रूप से निर्भर करती है। कृषि जीवन में भी पुरुष कुदाल चलाता है और स्त्री अछोरने -पछोरने का काम करती है। आज प्रत्येक पुरुष अपनी पत्नी को फूलों -सा आनंदमय भार समझता है और प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है। इस पराधीनता के कारण नारी अपने अस्तित्व का अधिकारिणी नहीं रहीं।
3. “ इसी प्रकार पुरुष भी स्त्रियोचित गुणों को अपनाकर समाज में स्त्रैण कहलाने से घबराता है।
उत्तर – ‘अर्धनारीश्वर’ शीर्षक निबंध में निबंधकार रामधारी सिंह दिनकर ने अर्धनारीश्वर के कल्पित स्वरूप की व्याख्या प्रस्तुत की है। अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती का कल्पित रूप है, जिसका आधा अंग पुरुष का और आधा अंग नारी का का होता है। संसार में सर्वत्र पुरुष पुरुष है और स्त्री स्त्री । नारी समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगेगा।
इसी प्रकार पुरुष भी स्त्रियोचित गुणों को अपनाकर समाज में स्त्रैण कहलाने से घबराता है। पुरुष स्त्रियों का गुण अपनाना नहीं चाहता है। लोग उसे स्त्रैण गुण सम्पन्न पुरुष कहने लगेंगे जो उसकी आलोचना होगी। उसे समान से कट कर जीना पड़ेगा।
स्त्री और पुरुष के गुणों के बीच एक प्रकार का विभाजन हो गया है तथा विभाजन की रेखा को लाँघने में नर और नारी, दोनों को भय लगता है।
Bihar Board Class 12th Hindi Notes गद्य खण्ड
1 | बातचीत |
2 | उसने कहा था |
3 | संपूर्ण क्रांति |
4 | अर्द्धनारीश्वर |
5 | रोज |
6 | एक लेख और एक पत्र |
7 | ओ सदानीरा |
8 | सिपाही की माँ |
9 | प्रगीत और समाज |
10 | जूठन |
11 | हँसते हुए मेरा अकेलापन |
12 | तिरिछ |
13 | शिक्षा |
Bihar Board Class 12th Hindi दिगंत भाग 2 Notes पद्य खण्ड
1 | कड़बक |
2 | सूरदास के पद |
3 | तुलसीदास के पद |
4 | छप्पय |
5 | कवित्त |
6 | तुमुल कोलाहल कलह में |
7 | पुत्र वियोग |
8 | उषा |
9 | जन-जन का चेहरा एक |
10 | अधिनायक |
11 | प्यारे नन्हें बेटे को |
12 | हार-जीत |
13 | गाँव का घर |
14 | Class 12th English |
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1 | Class 12th English Summary Notes |
2 | Class 12th Hindi |
3 | Class 10th Notes & Solutions |
4 | Bihar Board 12th Notes |
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