इस पेज में बिहार बोर्ड कक्षा 12 दिगंत भाग 2 हिंदी पाठ 6 एक लेख और एक पत्र के सारांश, पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर और Question Bank Previous Year Questions का व्याख्या किया गया है। We have include Bihar Board Class 12th Hindi Digant bhag 2 Chapter 6 ek lekh aur ek patra kahani summary, Class 12 Hindi Class 12 Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Bihar Board Notes Question Answers, Class 12 Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Bihar Board previous year questions, Class 12 Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Bihar Board text book question answer solutions, Class 12th Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Bihar Board summary, ek lekh aur ek patra class 12 question answer, ek lekh aur ek patra digant bhag 2 book solutions, class 12 hindi chapter 6 text book question answers, Class 12 Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Bihar Board, bseb Class 12 Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Bihar Board ka saransh avn question answer, Class 12 Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Bihar Board ka saransh avn question answer, ek lekh aur ek patra pdf notes, ek lekh aur ek patra ka saransh avam previous year question answer, Class 12 Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Bihar Board text book solutions
6. एक लेख और एक पत्र
लेखक- भगत सिंह
लेखक परिचय
जन्म- 28 सितम्बर 1907
निधन- 23 मार्च 1931 (शाम 7:33 मिनट पर, लाहौर षड्यंत्र केस में फांसी)
जन्म स्थान – बंगा चक्क न० 105 गगैरा ब्रांच वर्तमान लायलपुर (पाकिस्तान)
माता-पिता – विद्यावती और सरदार किशन सिंह
शिक्षा- आरंभिक शिक्षा गाँव बंगा में, लाहौर के डी.ए.वी स्कूल से 9वीं तक की पढ़ाई, बी.ए के दौरान पढ़ाई छोड़ दी।
परिवार – सम्पूर्ण परिवार स्वतन्त्रता सेनानी।
प्रभाव- बचपन में करतार सिंह सराभा और 1914 के गदर पार्टी के प्रति तीव्र आकर्षण। 16 नवंबर 1915 को सराभा की फांसी के समय भगत सिंह 8 वर्ष की उम्र के थे। सराभा का चित्र अपनी जेब में रखते थे।
गतिविधियां- 12 वर्ष की उम्र में जालियाँवाला बाग की मिट्टी से क्रांतिकारी जीवन की शुरुवात, 1922 में चौराचौरी कांड के बाद महात्मा गांधी और काँग्रेस से मोहभंग, 1923 में पढ़ाई और घर छोड़ गणेश शंकर विद्यार्थी के साथ, 1926 में नौजवान भारत सभा का गठन, 1928-31 तक चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ का गठन, 8 अप्रैल 1929 को बटुकेशवर दत्त और राजगुरु के साथ केन्द्रीय असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तार हुए।
कृतियाँ- पंजाब की भाषा और लिपि समस्या, विश्वप्रेम, युवक, मैं नास्तिक क्यों हुँ, अछूत समस्या, विद्यार्थी और राजनीति, सत्याग्रह और हड़ताले, बम का दर्शन,
शचींद्रनाथ सन्याल की पुस्तक बंदी जीवन और ‘डॉन ब्रीन की आत्मकथा’ का अनुवाद।
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विद्यार्थी और राजनीति लेख का सारांश
प्रस्तुत लेख में भगत सिंह ने एक महत्वपूर्ण विषय पर अपनी राय प्रकट की है कि विद्यार्थियों की राजनीति में भूमिका होनी चाहिए या नहीं। भगत सिंह का मानना था कि छात्रों को भी राजनीतिक में भाग लेना चाहिए। लेखक के अनुसार विद्यार्थियों को अपनी पढ़ाई जारी रखते हए राजनीति में भाग लेना चाहिए। जिन नौजवानों को देश का भविष्य तय करना है उन्हें राजनीति से अलग रखकर अक्ल का अंधा बनाना उचित नहीं है। लेखक मानते हैं कि छात्रों का मुख्य कार्य पढ़ाई करना है लेकिन देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार के उपाय करना भी छात्रों का कर्तव्य है।
लेखक कहते हैं कि पंजाब की सरकार विद्यार्थियों से कॉलेज में दाखिल होने से पहले इस आशय की शर्त पर हस्ताक्षर करवा लिए जाते हैं कि वे राजनीति में हिस्सा नहीं लेंगे। ऐसी शिक्षा छात्रों को क्लर्क बना सकती है और कुछ नहीं। लेखक कहते हैं कि प्रोफेसर का अपना ही ज्ञान अधूरा है जब कोई विद्यार्थी प्रोफेसर को रुसी लेखक की पुस्तक दिखाता है तो छात्र को बोल्शेविक पार्टी का सदस्य कहते हैं।
अंततः भगत सिंह कहना चाहते है कि विद्यार्थी परिश्रम से पढ़ाई करते हुए देश की राजनीति में भी हाथ बटाएँ। वे कहते हैं कि जिस प्रकार इंग्लैंड के छात्र कॉलेज छोड़कर जर्मनी के खिलाफ लड़ने के लिए निकल पड़े उसी प्रकार भारतीय छात्रों को भी पॉलिटिक्स में हिस्सा लेने की जरूरत है।
सुखदेव के नाम पत्र का सारांश
भगत सिंह द्वारा अपने क्रांतिकारी मित्र सुखदेव के पत्र का प्रत्युतर इस पत्र के माध्यम से दिया गया है जिसमें उन्होने कुछ समस्याओं और कठिनाइयों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। भगत सिंह ने अपने और सुखदेव के भीतर आनेवाले परिवर्तनों को बताया है । पूर्व के वर्षों में सुखदेव आत्महत्या को अत्यन्त निकृष्ट और अवांछनीय कृत्य मानते थे जबकि भगत सिंह इसका समर्थन करते थे। लेकिन कालांतर में भगत सिंह आत्महत्या को कायरता, निराश और असफलता से निर्मित मानसिकता का परिणाम मानते हैं जबकि सुखदेव कुछ अवस्थाओं में आत्महत्या को अनिवार्य और आवश्यक मानने लगे हैं।
भगत सिंह कहते है कि मनुष्य किसी भी काम को उचित मानकर ही करता है। वे कहते हैं कि कार्य को करने के बाद परिणाम का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। वे कहते हैं कि अगर मृत्युदंड मिलना तय है तो हमे धैर्यपूर्वक उस दिन की प्रतीक्षा करनी चाहिए लेकिन आत्महत्या कर लेना तो कायरता होगी।
भगत सिंह उन लोगों की सराहना करते है जो जेलों का दंड भुगतकर लौटने के बाद भी संघर्षरत हैं। वे कहते हैं कि मुझे मृत्युदंड की सजा सुनाई जाएगी इसपर मुझे पूर्ण विश्वास है और मुझे किसी भी प्रकार की क्षमा या नर्म व्यवहार की कोई आशा नहीं है।
अंततः अपनी इच्छा व्यक्त करते हुए भगत सिंह कहते है कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि जब यह आंदोलन अपनी चरम पर पहुंचे तो मुझे फांसी दे दी जाए।
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पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1. विद्यार्थियों को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए ?
उत्तर- विद्यार्थियों को राजनीति में भाग इसलिए लेना चाहिए क्योंकि उन्हें ही कल देश की बागडोर अपने हाथ में लेनी है । अगर वे आज से ही राजनीति में भाग नहीं लेंगे तो आने वाले समय में देश की भली-भाँति नहीं सँभाल पाएँगे, जिससे देश का विकास न हो सकेगा ।
प्रश्न 2. भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ हैं ?
उत्तर- भगत सिंह की विद्यार्थियों से बहुत-सी अपेक्षाएँ हैं । वे चाहते हैं कि विद्यार्थी राजनीति तथा देश की परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त करें और उनके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करें । वे देश की सेवा में तन-मन-धन से जुट जाएँ और अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे न हटें ।
प्रश्न 3. भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है ? उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें ।
उत्तर – भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी के रूप में हमारे सामने आते हैं जिनमें देश की आजादी के साथ समाज की उन्नति की प्रबल इच्छा भी दिखती है । इसकी शुरुआत 12 वर्ष की उम्र में जालियाँवाला बाग की मिट्टी लेकर संकल्प के साथ होती है, उसके बाद 1923 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ से । भगत सिंह यह जानते थे कि समाज में क्रांति लाने के लिए जनता में सबसे पहले राष्ट्रीयता का प्रसार करना होगा । उन्हें एक ऐसे विचारधारा से अवगत कराना होगा जिसकी बुनियाद समभाव समाजवाद पर टिकी हो । जहाँ शोषण की कोई बात न हो । इसलिए उन्होंने लिखा कि समाज में क्रांति विचारों की धार से होगी । वे समाज में गैर-बराबरी, भेदभाव, अशिक्षा, अंधविश्वास, गरीबी, अन्याय आदि दुर्गुण एवं अभाव के विरोधी के रूप में खड़े होते हैं, मानवीय व्यवस्था के लिए कष्ट, संघर्ष सहते हैं । भगत सिंह समझते हैं कि बिना कष्ट सहकर देश की सेवा नहीं की जा सकती है । इसीलिए उन्होंने जो नौजवान सभा बनायी थी उसका ध्येय सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना था ।
क्रांतिकारी भगत सिंह कहते हैं कि मानव किसी भी कार्य को उचित मानकर ही करता है । जैसे हमने लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंकने का कार्य किया था । इस पर दिल्ली के सेसन जज ने असेम्बली बम केस में भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी । कष्ट संदर्भ में रूसी साहित्य का हवाला देते हुए कहते हैं, विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है । हमारे साहित्य में दुःख की स्थिति न के बराबर आती है परन्तु रूसी साहित्य के कष्टों और दुःखमयी स्थितियों के कारण ही हम उन्हें पसंद करते हैं । खेद की बात यह है कि कष्ट सहन की उस भावना को अपने भीतर अनुभव नहीं करते । हमारे जैसे व्यक्तियों को जो प्रत्येक दृष्टि से क्रांतिकारी होने का गर्व करते हैं सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों ‘चिन्ताओं’ दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए जिनको हम स्वयं आरंभ किए संघर्ष के द्वारा आमंत्रित करते हैं और जिनके कारण हम अपने आप को क्रांतिकारी कहते हैं । इसी आत्मविश्वास के बल पर भगत सिंह फाँसी के फंदे पर झूल गये । वे जानते थे मेरे इन कष्टों, दुःखों का जनता पर बेहद प्रभाव पड़ेगा और जनता आन्दोलन कर बैठेगी । अतः भगत सिंह का कहना सत्य है कि कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है ।
प्रश्न 4. भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुन्दर कहा है ? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें ।
उत्तर – क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह देश सेवा के बदले दी गई फाँसी (मृत्युदण्ड) को सुन्दर मृत्यु कहा है । भगत सिंह इस सन्दर्भ में कहते हैं कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देनी चाहिए । इसी दृढ़ इच्छा के साथ हमारी मुक्ति का प्रस्ताव सम्मिलित रूप में और विश्वव्यापी हो और उसके साथ ही जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाय । यह मृत्यु भगत सिंह के लिए सुन्दर होगी जिसमें हमारे देश का कल्याण होगा । शोषक यहाँ से चले जायेंगे और हम अपना कार्य स्वयं करेंगे । इसी के साथ व्यापक समाजवाद की कल्पना भी करते हैं जिसमें हमारी मृत्यु बेकार न जाय । अर्थात् संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है । भगत सिंह आत्महत्या को कायरता कहते हैं । क्योंकि कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा । वह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा । इस संदर्भ में उनका विचार है कि मेरे जैसे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता । हम तो अपने जीवन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं । हम मानवता की अधिक-से-अधिक सेवा करना चाहते हैं । संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है । प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती । भगत सिंह आत्महत्या को कायरता इसलिए कहते हैं कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं । इस संदर्भ में वे एक विचार भी देते हैं कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है ।
प्रश्न 5. भगत सिंह रूसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते हैं ? वे एक क्रान्तिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं ?
उत्तर- सरदार भगत सिंह रूसी साहित्य को महत्वपूर्ण इसलिए मानते हैं कि रूसी साहित्य के प्रत्येक स्थान पर जो वास्तविकता मिलती है वह हमारे साहित्य में कदापि दिखाई नहीं देती हैं । उनकी कहानियों में कष्टों और दुखमयी स्थितियाँ हैं जिनके कारण दूख कष्ट सहने का प्रेरणा मिलती है । इस दुख, कष्ट से सहृदयता, दर्द की गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य की ऊँचाई से हम बरबस प्रभावित होते हैं । ये कहानियाँ हमें जीव संघर्ष की प्रेरणा देती हैं । नये समाज निर्माण की प्रक्रिया में मदद करती हैं । इसलिए ये कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं
सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से अपेक्षा करते हैं कि हम उनकी कहानियाँ पढ़कर कष्ट सहन की उस भावना को अनुभव करें । उनके कारणों पर सोचें – विचारें । हम जैसे क्रान्तिकारियों का सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों, चिन्ताओं, दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए । भगत सिंह कहते हैं कि मेरा नजरिया यह रहा है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्त्ता को ऐसी स्थितियाँ में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो कठोरतम सजा दी जाय उसे हँसते-हँसते बर्दाश्त करना चाहिए । भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि किसी आंदोलन के बारे में यह कह देना कि दूसरा कोई इस काम को कर लेगा या इस कार्य को करने के लिए बहुत लोग हैं यह किसी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता । इस प्रकार जो लोग क्रांतिकारी क्षेत्र के कार्यों का भार दूसरे लोगों पर छोड़ने को अप्रतिष्ठापूर्ण एवं घृणित समझते हैं उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए । उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें, परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए ।
प्रश्न 6. ‘उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें परन्तु उन्हें औचित्य ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता ।’ भगत सिंह के इस कथन का आशय बताएँ । इससे उनके चिन्तन का कौन-सा पक्ष उभरता है ? वर्णन करें ।
उत्तर- सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि क्रांतिकारी शासक यदि शोषक हो. कानून व्यवस्था यदि गरीब-विरोधी, मानवता विरोधी हो तो उन्हें चाहिए कि वे उसका पुरजोर विरोध करें, परन्तु इस बात का भी ख्याल करें कि आम जनता पर इसका कोई असर न हो, संघर्ष आवश्यक हो अनुचित नहीं । संघर्ष आवश्यकता के लिए हो तो उसे न्यायपूर्ण है सिर्फ बदले की भावना हो तो अन्यायपूर्ण । इस संदर्भ में रूस की जारशाही का हवाला देते हुए कहते हैं कि रूस में बंदियों को बंदीगृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही जारशाही का तख्ता उलटने के पश्चात् उनके द्वारा जेलों के प्रबंध में क्रान्ति लाए जाने का सबसे बड़ा कारण था । विरोध करो परन्तु तरीका उचित होना चाहिए, न्यायपूर्ण होना चाहिए । इस दृष्टि से देखा जाय तो भगत सिंह का चिन्तन मानवतावादी है जिसमें समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है । यदि मानवता पर तनिक भी प्रहार हो, उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए ।
प्रश्न 7. निम्नलिखित कथनों का अभिप्राय स्पष्ट करें-
(क) मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं।
(ख) हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपम है ।
(ग) मनुष्य को अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
उत्तर-(क) भगत सिंह का मानना है कि विपत्तियाँ मनुष्य को पूर्ण बनाती हैं । अर्थात् मनुष्य सुख की स्थिति में तो बड़े ही आराम से रहता है । लेकिन जब उस पर कोई दुख आता है तो वह उसे दूर करने के प्रयास करता है जिससे उसका ज्ञान तथा कार्यक्षमता बढ़ती है और वह पूर्णत: पाता है ।
(ख) भगत सिंह के अनुसार यदि मनुष्य यह सोचने लगे कि अगर मैं कोई कार्य नहीं करूँगा तो वह कार्य नहीं होगा तो यह पूर्णतः गलत है । वास्तव में मनुष्य विचार को जन्म देनेवाला नहीं होता, अपितु परिस्थितियाँ विशेष विचारों वाले व्यक्तियों को पैदा करती हैं । अर्थात् हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज है ।
(ग) भगत सिंह कहते हैं कि हमें एक बार किसी लक्ष्य या उद्देश्य का निर्धारण करने के बाद उस पर अडिग रहना चाहिए । हमें विश्वास रखना चाहिए कि हम अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेंगे ।
प्रश्न 8. ‘जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए ।‘ आज जब देश आजाद है भगत सिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे । अपना पक्ष प्रस्तुत करें ।
उत्तर – भगत सिंह का यह विचार है कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतः भुला देना चाहिए, बहुत ही उत्तम तथा श्रेष्ठ है । आज जब देश आजाद है तब भी भगत सिंह को यह विचार पूर्णत: प्रासंगिक है, क्योंकि किसी भी काल या परिस्थिति में देश या समाज मनुष्य से ऊपर ही रहता है। यदि देश का विकास होगा तो ही वहाँ रहनेवाले लोगों का विकास होगा। वहीं यदि देश पर किसी प्रकार की विपदा आती है तो वहाँ के निवासियों को भी कष्टों का सामना करना पड़ेगा । इसलिए हमें सदैव अपने से पहले देश की श्रेष्ठता, विकास तथा मान-सम्मान के विषय में सोचना चाहिए । साथ ही इसके लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए ।
प्रश्न 9. भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है ? वे ऐसा समय क्यों चुनते हैं ?
उत्तर – भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए इच्छा व्यक्त करते हुए कहा है कि जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाए । वे ऐसा समय इसलिए चुनते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि यदि कोई सम्मानपूर्ण या उचित समझौता होना हो तो उन जैसे व्यक्तियों का मामला उसमें कोई रूकावट उत्पन्न करे ।
प्रश्न 10. भगत सिंह के इस पत्र से उनकी गहन वैचारिकता, यथार्थवादी दृष्टि का परिचय मिलता है । पत्र के आधार पर इसकी पुष्टि करें ।
उत्तर- महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने इस पत्र में तीन-चार सवालों पर विचार किया है जिनमें आत्महत्या, जेल जाना, कष्ट सहना, मृत्युदण्ड और रूसी साहित्य है ।
भगत सिंह का आत्महत्या के संबंध में विचार है कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर लेना मनुष्य की कायरता है । यह कायर व्यक्ति का काम है । एक क्षण में समस्त पुराने अर्जित मूल्य खो देना मूर्खता है अतः व्यक्ति को संघर्ष करना चाहिए । दूसरा जेल जाना भगत सिंह व्यर्थ नहीं मानते क्योंकि रूस की जारशाही का तख्ता पलट बंदियों का बंदीगृह में कष्ट सहने का कारण बना । अतः यदि आन्दोलन को तीव्र करना है तो कष्ट सहन से नहीं डरना चाहिए ।
देश सेवा के क्रम में क्रांतिकारी को ढेरों कष्ट सहने पड़ते हैं- जेल जाना, उपवास करना इत्यादि अनेकों दण्ड । अतः भगत सिंह कहते हैं कि हमें कष्ट सहने से नहीं डरना चाहिए क्योंकि विपत्तियाँ ही व्यक्ति को पूर्ण बनाती हैं ।
मृत्युदण्ड के बारे में भगत सिंह के विचार हैं कि वैसी मृत्यु सुन्दर होगी जो देश सेवा के संघर्ष के लिए हो । संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। श्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट आदर्श के लिए दी गई फाँसी एक आदर्श, सुन्दर मृत्यु है। अत: क्रांतिकारी को हँसते-हँसते फाँसी का फंदा डाल लेना चाहिए। रूसी साहित्य में वर्णित कष्ट दुख, सहनशक्ति पर फिदा है भगत सिंह। रूसी साहित्य में कष्ट सहन की जो भावना है उसे हम अनुभव नहीं करते । हम उनके उन्माद और चरित्र की असाधारण ऊँचाइयों के प्रशंसक है परन्तु इसके कारणों पर सोच विचार करने की चिन्ता कभी नहीं करते । अतः भगत सिंह का विचार है कि केवल विपत्तियाँ सहन करने के लिए साहित्य के उल्लेख ने ही सहृदयता, गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य में ऊँचाई उत्पन्न की है । इस प्रकार हम पाते हैं कि भगत सिंह की वैचारिकता सीधे यथार्थ के धरातल पर टिकी हुई आजीवन संघर्ष का संदेश देती है ।
Class 12 Hindi Ek Lekh Aur Ek Patra Bihar Board previous year questions
Previous Year Questions
लघु उत्तरीय प्रश्न
1. भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है?
उत्तर – भगत सिंह कहते हैं कि क्रांति सतत् कार्य करने में, प्रयत्नों से और कष्ट सहन करने और बलिदान करने से होती है।
भगत सिंह देशवासियों के हृदय में अमिट छाप छोड़ने के लिए फाँसी की सजा चुनते हैं। वह चाहते हैं कि जब आंदोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाए।
2. भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ हैं?
उत्तर – भगत सिंह आधुनिक भारतीय इतिहास की एक पवित्र स्मृति हैं। वे पढ़नेवाले नौजवानों (विद्यार्थियों) से अपेक्षा रखते हैं कि वे केवल पढ़ें ही नहीं। वे समझदारी भी पैदा करें। देश गुलाम है। इस गुलामी से उन्हें ही मुक्त कराना है। इसके लिए उन्हें राजनीति का सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक ज्ञान भी प्राप्त करना चाहिए। ऐसा करने से देश की आजादी का रास्ता प्रशस्त हो सकेगा। आगे देश का नेतृत्व भी तो नौजवानों को ही करना होगा।
3. जीवन में विद्रोह का क्या स्थान है?
उत्तर – जीवन को सफलता के शीर्ष पर ले जाने के लिए विद्रोह आवश्यक है। विद्रोह के अभाव में हम भयभीत ही रहेंगे। ऐसी अवस्था में हम खोज नहीं कर सकते। हम निरीक्षण नहीं कर सकते। हम नहीं सीख सकते। न हीं हम जागरूक बन सकते हैं। क्रांति से विद्रोह से हम भय का उच्छेदन कर सफल हो सकते हैं। संगठित धर्म के विरुद्ध भी हमें विद्रोह करना होगा। सड़े हुए समाज को चीरफाड़कर नया बनाना होगा।
4. व्यावहारिक राजनीति क्या होती है?
उत्तर – अपने राजनेताओं का स्वागत करना और भाषण सुनना व्यावहारिक राजनीति है। महात्मा गाँधी, जवाहर लाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस के स्वागत में पलक पाँवड़े बिछाना व्यावहारिक राजनीति है।
कमीशन और वाइसराय का स्वागत करना भी व्यावहारिक राजनीति का ही एक हिस्सा है। सरकारों और देशों के प्रबंध से संबंधित कोई भी बात भी व्यावहारिक राजनीति ही है।
सप्रसंग व्याख्यात्मक प्रश्न
1. जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए।
उत्तर – प्रस्तुत पंक्तियाँ भगत सिंह ने ‘एक लेख और एक पत्र’ शीर्षक पाठ में लिखी हैं। देश को जब आजाद कराना है तब हमें 33 करोड़ लोगों के हितों की चिंता करनी है। एक आदमी का क्या कष्ट हो रहा है— इसे भूल जाना है। हम भगत सिंह के इस विचार से शतशः सहमत हैं। आज भारत कुर्बानियों की बदौलत आजाद है। इसकी रक्षा भी हमें बलिदानपूर्वक ही करना है
2. हम तो अपने समय की आवश्यकता की उपज हैं।
उत्तर – भगत सिंह कहते हैं कि मनुष्य अपने समय की आवश्यकता की उपज हैं। समय ही बलवान होता है। भारत गुलाम था। आजाद हो जाएगा। अत: अपने रास्ते पर भारतीयों को चलकर देश को आजाद बनाना होगा। जेल की सजा या मृत्युदंड से डरना नहीं होगा ।
Bihar Board Class 12th Hindi Notes गद्य खण्ड
1 | बातचीत |
2 | उसने कहा था |
3 | संपूर्ण क्रांति |
4 | अर्द्धनारीश्वर |
5 | रोज |
6 | एक लेख और एक पत्र |
7 | ओ सदानीरा |
8 | सिपाही की माँ |
9 | प्रगीत और समाज |
10 | जूठन |
11 | हँसते हुए मेरा अकेलापन |
12 | तिरिछ |
13 | शिक्षा |
Bihar Board Class 12th Hindi दिगंत भाग 2 Notes पद्य खण्ड
1 | कड़बक |
2 | सूरदास के पद |
3 | तुलसीदास के पद |
4 | छप्पय |
5 | कवित्त |
6 | तुमुल कोलाहल कलह में |
7 | पुत्र वियोग |
8 | उषा |
9 | जन-जन का चेहरा एक |
10 | अधिनायक |
11 | प्यारे नन्हें बेटे को |
12 | हार-जीत |
13 | गाँव का घर |
14 | Class 12th English |
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1 | Class 12th English Summary Notes |
2 | Class 12th Hindi |
3 | Class 10th Notes & Solutions |
4 | Bihar Board 12th Notes |
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